Dr Pallav Kumar Nandwana
डा पल्लव ने उदयपुर के मोहनलल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से एम ए (स्वर्ण पदक) तथा पीएच डी की उपाधियां प्राप्त कीं। आपने ‘हिन्दी की जनवादी कहानी और स्वयं प्रकाश’ विषय पर वर्ष 2002 में पीएच डी की उपाधि प्राप्त की । सत्र 2002- 2003 से अध्यापन कर रहे डा पल्लव को राजस्थान के दो विश्वविद्यालयों में अध्यापन का अनुभव है। बी ए तथा एम ए की कक्षाओं के अध्यापन के साथ डा पल्लव को राजस्थान विद्यापीठ के लिए एक वर्ष तक मीडिया अध्ययन केन्द्र के समन्वयक के रूप में कार्यानुभव भी है ।
अगस्त 2010 से हिन्दू कालेज में अध्यापन कर रहे डा पल्लव हिन्दी साहित्य में सुधि समीक्षक और सजग सम्पादक के तौर पर जाने जाते हैं। हिन्दी की कथा आलोचना के लिए उन्हें विशेषत: जाना जाता है। उनके सम्पादन में नियमित प्रकाशित हो रही साहित्य संस्कृति की पत्रिका ‘बनास जन’ (ISSN 2231-6558) ने अपने अंकों से हिन्दी समाज का ध्यान खींचा है। ‘कहानी का लोकतन्त्र’ उनकी पहली आलोचना पुस्तक है जिस पर आचार्य निरंजननाथ सम्मान और डा घासीराम वर्मा पुरस्कार मिले हैं। इसके अलावा उनकी अन्य महत्त्वपूर्ण पुस्तकें निम्न हैं- लेखकों का संसार, मीरा : एक पुनर्मूल्यांकन, अस्सी का काशी : गल्पेतर गल्प का ठाठ, कफ़न – पाठ पुन:पाठ, गपोड़ी से गपशप, असग़रवजाहतकीचुनिन्दाकहानियां ।
डा पल्लव भारतीय प्रौढ शिक्षा संघ के आजीवन सदस्य हैं तथा हिन्दी साहित्यिक पत्रिका ‘अक्षर पर्व’ के नियमित स्तम्भकार हैं।